प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने अपने संबोधन में कई बार इस बात को रेखांकित किया है कि खेत और शरीर एक जैसा है। जैसे शरीर की कमियों की जांॅच के लिये विभिन्न प्रकार की प्रयोगशालाओं का सहारा लिया जाता है, वैसे ही खेतों की मिट्टी की जांच के लिये भी समुचित संख्या मंे प्रयोगशालाएं होनी चाहिए ताकि प्रत्येक खेत का सोइल हेल्थ कार्ड बन सके। उन्होंने यह भी रेखांकित किया कि यह धारणा गलत है कि खेत में लबालब पानी होगा तभी अच्छी खेती हो सकेगी।
सिंचाई के अभ्यास के बारे में एक प्राकृतिक सत्य बात यह है कि गुणवत्ता की दृष्टि से पानी कितना भी अच्छा क्यों ने हो यह अपने साथ कम या अधिक लवण अवष्य लाता है। जब सिंचाई का अभ्यास सिंचित कमान क्षेत्रों में 30, 40, 50 या 60 वर्ष से हो रहा हो तो उन खेतों में लवणता की समस्या अवष्य जनित होगी। इसके फलस्वरूप भूमि की उर्वरता में कमी होगी। स्वस्थ्य मृदा बनाये रखने के लिये भूमि से अवांक्षित लवण बाहर निकालने होंगे। लवण को बाहर निकालने में जल एवं उप सतही जल निकासी प्रौद्योगिकी की भूमिका प्रमुख रहेगी।
तटीय क्षेत्रों का भी एक उदाहरण लेकर कि मृदा लवणता की समस्या कैसे पनपती है, समझने का प्रयास करते हैं। पूर्वी समुद्र तट के राज्य पष्चिम बंगाल, ओडिषा, आंध्र प्रदेष एवं तमिलनाडु के किसान क्यों गरीब है, उनकी उत्पादकता भी कम है, इसका प्रमुख कारण खारा पानी, अधिक पानी, लवणता से प्रभावित भूमि तथा जल निकासी का विधिवत व्यवस्था का न होना है। डाॅ. पी.के. मिश्रा के लेख ‘आपदाओं का असर घटाने की पहल‘ में चक्रवात, विष्व बैंक सहायता प्राप्त चक्रवात जोखिम कार्यक्रम का जिक्र किया गया है । प्राकृतिक आपदाओं से उपजी भूमि सतह पर दिखाई देने वाले नुकसान को सभी देख लेते है, परन्तु वहांँ की कृषि योग्य भूमि के अंदरूनी स्वास्थ्य पर क्या प्रभाव पड़ता है, कोई देख नहीं पाता है। इस पर ध्यान देने की आवष्यकता है।
– मान सिंह, जल प्रौद्योगिकी केन्द्र,
भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान, नई दिल्ली-12